भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अशेष / जयप्रकाश मानस

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:44, 3 मार्च 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँधी-तूफान उठा

आया

आकर चला गया

सब कुछ उखड़ने-टूटने के बाद भी

बचा रह गया

थिर होने की कोशिश में

काँपता हुआ एक पेड़

कहने को

कहने को तो

बची रह गयी

पेड़ पर एक भयभीत चिड़िया भी

कोई ग़म नहीं

शिकवा भी नहीं

गीत सारे-के सारे

बचे रह गए