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सुधा सब पीने को तैयार / लाखन सिंह भदौरिया
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सुधा सब पीने को तैयार, गरल का ग्राहक कौन बनें?
भोग के लिये मचा संघर्ष, त्याग से भाग रहा संसार,
घ्रणा का देकर नित प्रतिदान विश्व सब माँग रहा है प्यार,
फूल सब चुनने को तेयार, शूल का चाहक कौन बनें?
सुधा सब पीने को तैयार, गरल का ग्राहक कौन बनें?
बना कर इस धरती को नर्क, स्वर्ग के सपने रहे निहार,
जगत से जीवन बाजी हार, माँगते अमरों से उपहार,
बाँटने को स्वर्गिक सौगात, द्वेष का दाहक कौन बनें?
सुधा सब पीने को तैयार, गरल का ग्राहक कौन बनें?
मनुज का दुबक रहा देवत्व, प्रबलता पर पशुता का राज,
स्वत्व के पंजे में कर्तव्य, सिसकता भरता आहें आज,
समझकर अपना कुछ दायित्व, भार का वाहक कौन बनें?
सुधा सब पीने को तैयार, गरल का ग्राहक कौन बनें?