भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लुत्फ़ सारा मुहब्बत का जाता रहा / सुभाष पाठक 'ज़िया'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:01, 11 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष पाठक 'ज़िया' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लुत्फ़ सारा मुहब्बत का जाता रहा
मैं उसे वो मुझे आजमाता रहा
अपना ग़म तो वो हँसकर उठाता रहा
मेरा ख़ुश रहना उसको सताता रहा
टुकड़े टुकड़े बिखर तो गया आइना
सच दिखाया था सच ही दिखाता रहा
दुश्मनी थी अन्धेरों से उसकी मगर
रातभर दिल हमारा जलाता रहा
जीत में भी मज़ा जीत का था कहाँ
हारने वाला जब मुस्कुराता रहा