भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्रह्मपिशाच / रामनरेश पाठक
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 17 अक्टूबर 2017 का अवतरण
एक खारे जल के पहाड़ ने
लील लिया
वह निस्पंद महानगर
कमरे में टंगे प्रेमिकाओं के चित्र
स्याह पंखों में बदल गए
सभी मेज़ों के कागज़ात और दस्तावेज़
सोये बच्चों के सिरहाने
पतंग या वसीयत बन कर रखे गए
नारे और गुल और परचे
नहान घर में बह गए
वायलिनें छिपकिली की लाश बनकर
पहाड़ में चस्पां हो गयी
मूर्तियाँ प्रेत बनकर उड़ गयी
और चुप बैठा रहा एक ब्रह्मपिशाच
अपनी खड़ाऊ की मग पर दृष्टि गड़ाए
गुम-सुम !