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टीवी / अंजनी कुमार शर्मा

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नै छोड़तें बनै छै
नै बंद करतें बनै छै।
ऐलोॅ छै घरोॅ कं जपाल,
बनैतै सब्भै केॅ कंकाल।

चुप रहै छै आबेॅ बीबी,
पर भूकतें रहै छै रातो दिनोॅ टीवी।
बुतरु केॅ देखै के लगलोॅ छै चस्का,
क्लासोॅ में लगै छै साले-साल लस्का।

पढ़ै खनी खेलै छै खेल,
दिन भर देखै दै टीवी,
कहिनै नै करतै फेल?

टीवी देखला सें थोड़े बनतै बुतरु सिनी
हीरो आरो भीलन,
देखला सें थोड़ें भरतै पेट,
सब्भै कामोॅ में होय छै आरो लेटे लेट।

भोर-भोर सुनाय पड़ै छै टीवी के बोली,
मैदान की जैभोॅ देखोॅ रंगोली।
कखनी करभेॅ नाश्ता?
छोढ़भेॅ केना ‘चंद्रकांता’

दुपरिया केॅ चलै छै क्रिकेट आरी टेनीस,
केकरोॅ पूछोॅ स्कोर जों होय जैथौं मीस?
नै होथौं रातो के नसीब पराठा;
सतू खिलाय देथौं ‘दी ग्रेठ मराठा’