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बादरे! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

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खंभात की खाड़ी की ओर से उमड़ते-घुमड़ते
आते बादलों को देखकर

गदबदे-गदबदे, साँवरे-साँवरे,
आ गये बादरे!

केश बिखरे हुए, आँख अंजन-अँजी,
बीजुरी दोलड़ा स्वर्णकंठी सजी,
रूपवन्ती किसी गोरटी की मदिर-
मस्त-माते नयन में सजल याद ले!
आ गये बादरे!

छमछमाते चरण में ठुमक मणिपुरी,
लंक में है लचक, ओठ पर बाँसुरी;
झाँवरी-झाँवरी, दूबरी-दूबरी-
आ गये हैं, धरा को लगाने गले!
आ गये बादरे!