भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विस्फोट /राम शरण शर्मा 'मुंशी'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 20 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम शरण शर्मा 'मुंशी' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी-कभी
सरपट भागते अनगिनत पैर
अचानक रुक जाते हैं ।
धूल भरे गलियारों में
अलग-अलग साँचे ढलना
बन्द हो जाते हैं ।
टकरा कर बोझीले कोहरे की दीवार से
हाथ-पैर अपंग हो जाते हैं।

तभी कहीं होता है
विस्फोट,
जाग उठते हैं करोड़ों लोग
गहरी नींद से।

रुकी हवा फिर से
चलने लग जाती है।