भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विलाप / मिथिलेश कुमार राय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:07, 24 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिथिलेश कुमार राय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुख का साम्राज्य बहुत बड़ा है ।

यह एक बूढ़ी का वक्तव्य है,
जो बोलती थीं तो लगता था
कि गाढ़ा होकर दुख ही बरस रहा है ।
दुख सुनते हुए मैं लगातार भीग रहा था,
उसी ने फिर सुखाया ।
सुख की, बस, कुछ यादें थीं उनके पास
जो आती थीं तो लगता था
कि रौशनी आ गई है,
कोई कुछ इस तरह आ गया है
जो उसे आकर गुदगुदाता है
और बदले में वह खिलखिलाने लगतीं हैं ।

सुख तो, बस, कुछ यादें हैं ।

यह भी उसी स्त्री का वक्तव्य है
जो दुख से भींगकर जब थरथराने लगतीं
गाँठ खोलतीं
और उसके थोथले मुँह हंसी से भर जाते