भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खूबसूरत लम्हें / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 21 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिंदगी से कई ज़्यादा ख़ूबसूरत है
मेरी यादों के
ये लम्हें
मुझसे कई बार
मेरी धड़कने पूछती है
जब मैं ठहर जाऊँगी
तो तुम्हारे लम्हों का क्या होगा
सब ख़त्म हो जाएँगे
फिर क्यूँ संभाल के रखा है इनको?
अब मेरी धड़कन को मैं कैसे समझाऊँ
तुम धड़कते ही इन लम्हों की वजह से हो
चाहो तो इन लम्हों को
चुन अपने कुर्ते की जेब में रख लो,
या अपने तकिए के गिलाफ में कहीं समेट रख लो
लेकिन अपने से दूर मत होने देना इन्हें
आँखों से ओझल मत होने देना इन्हें
जी लेना इन्हें बार-बार
अपने हिसाब से
बेफिक्र हो ...