भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़रा तुम बदलते / विकास
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:36, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विकास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ज़रा तुम बदलते
मेरे साथ चलते
जो होती शराफत
न ऐसे उछलते
अगर मोम होते
कभी तो पिघलते
कड़ी धूप में भी
बराबर निकलते
ख़ुदी हैं मदारी
ख़ुदी से बहलते