भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतराल / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 14 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश विमल |अनुवादक= |संग्रह=आमेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बूंद बूंद से गागर
भरती होगी
लोगों की
अपनी तो सदा
खाली ही नज़र आती है...
दरअसल
इतना लम्बा है यहाँ
बूंदों का अंतराल
कि जब तक
दूसरी आये
पहली दम तोड़ देती है...!