भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात / मृदुला सिंह
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:41, 11 सितम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला सिंह |अनुवादक= |संग्रह=पोख...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अस्पताल के अंधकार में
उसके अंतर का अकेलापन
बह रहा चुपचाप
यह महामारी की त्रासद रात है
मन जल रहा
खिड़की की झिर्रियों से घुसती रोशनी से
निर्वासित है जिजीविषा
अधखुली आंखों में
वेंटिलेटर की प्रतीक्षा है अंतहीन
हाय /
देखो उधर!
हंसता है वर्तमान