भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अव्यवस्था / मोहन साहिल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:38, 19 जनवरी 2009 का अवतरण ("अव्यवस्था / मोहन साहिल" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop])
व्यवस्थित नहीं हो पाता मेरा ये कमरा
अव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण है
कमरे में मेरा होना
मुझे नहीं मिलती वक़्त पर एशट्रे
तीलियाँ जला डालती हैं
उंगलियों के पोर
सब कुछ उलट-पलट कर भी
कमरे में नहीं मिलती मुझे
गांधी की आत्मकथा
देशभक्ति और शास्त्रीय संगीत के कैसेट
जाने कहाँ रख दिए गए हैं
बहुत दिनों से शुरू की
अधूरी कविता नदारद है
जबकि अभी-अभी सूझा है
उसका अंत
मेरे कमरे में हर वक़्त
मौजूद रहता है मेरा बच्चा
एकटक देखता मेरी बौख़लाहट
और परेशान हो जाता है
सिर पर हाथ रख
अक्सर निहारता हूं उसका चेहरा
और अपनी कल्पना के साँचे में
ढालना चाहता हूँ उसे
और बनी रहती है
सारी अव्यवस्था।