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इंद्रप्रस्थ / तेज राम शर्मा

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आँखों के सामने हैं सारे दृश्य
मैं धृतराष्ट्र की तरह
अंधा होकर देखता हूँ सब कुछ
अठारह दिनों में समाप्त नहीं होगा यह युद्ध
न ही संजय अकेला होगा
अहिल्या बैठी होगी शिला पर
निर्वस्त्र द्रौपदी दुर्योधन की जंघा पर
दुशासन सिंहासन की रक्षा में तैनात होगा
शिखंडी को देख
भीष्म अपनी प्रतिज्ञा भूल चुके होंगे
कर्ण क्यों बनेगा दानवीर
इन्द्र बिना कवच के लौट आएगा
कृष्ण इस युद्ध में
अर्जुन के सारथी नहीं होंगे
वे होंगे तटस्थ
भगवान की तरह
द्वापर से भिन्न होगा दृश्य
युधिष्ठिर इन्द्रप्रस्थ से होगा
निष्कासित
भीम कभी का समा गया होगा
धृतराष्ट्र के स्नेहपाश में
सौ पुत्र हथिया चुके होंगे सभी सौ पद
इन्द्रप्रस्थ की परंपरा बहुत पुरानी है
यहाँ इतिहास दोहराया नहीं जाता
रचा जाता है।