भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौत / अरुण कमल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:33, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ूब साफ़ थी लौ कि अचानक
झुक गई बत्ती
किसी को मालूम नहीं था
धीरे-धीरे गल रहा था मोम
धीरे-धीरे जल रहा था सूत
मैं क्या कहूंगा जाकर बच्चे की माँ से
कैसे मैं सामने खड़ा हो पाऊंगा
दौड़ती चली जा रही थी गेंद ख़ूब तेज़
एक छोर से दूसरे छोर मैदान में कि अचानक
झाड़ी में छुप गई
जिसका बेटा मर गया हो
उससे कोई क्या कहेगा जाकर
मैं तो यह नहीं कह सकता-- ईश्वर की इच्छा है सब
उसी ने दिया था
उसी ने ले लिया
फिर भी मैं क्या कहूंगा जाकर?