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ख़त / रेणु हुसैन
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भीगी-भीगी पलकें हैं
आंखों में आंसू गहरे
बिखरे-बिखरे से जज़बात
जज़बातों का दरिया है
बुझी-बुझी सी शमां है कोई
और पिघलते अरमां है
इसे महज़ एक ख़त ना समझना
इसमें सारी उम्र बयां है