भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़त / रेणु हुसैन

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेणु हुसैन |संग्रह=पानी-प्यार / रेणु हुसैन }} {{KKCatKav…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


भीगी-भीगी पलकें हैं
आंखों में आंसू गहरे

बिखरे-बिखरे से जज़बात
जज़बातों का दरिया है

बुझी-बुझी सी शमां है कोई
और पिघलते अरमां है

इसे महज़ एक ख़त ना समझना
इसमें सारी उम्र बयां है