भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आईना / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
आईना छोटोॅ पड़ी गेलै
चेहरा के कालापन बड़ोॅ
आईना छै
आईना भर
चेहरा के कालापन
एक सच्चाई
आईना देखतें रही गेलै
कालापन केॅ
विवश होय केॅ