भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत / गंगा प्रसाद राव
Kavita Kosh से
गजुरै छै बीया एक फूलॅ के
ऐंगना के पार
महकै छै पहलै सें सौंसे घर द्वार
मातलॅ पुरबैया झकोरै छै विरवा केॅ
झूमै शराबी रं सौंसे ठो ठार
महकै मॅन चन्दन रं
लहकै कचनार
गजुरै छै बीया एक फूलॅ के
ऐंगना के पार-