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नहीं निहारा / रमेश कौशिक
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जो कुछ भी घटा है
या
घटता जा रहा है
उस सबके पीछे
कहीं न कहीं
मेरा हाथ रहा है
लेकिन इसको मैंने
कभी नहीं
स्वीकारा
क्योंकि
मेरे हाथों ने
जो कुछ किया
उसे कभी
मेरी आँखों ने
नहीं निहारा