भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम / ब्रजेश कृष्ण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने तुम्हारा नाम लिया
तो धीरे से मेरे होंठ हिले
जहाँ मैं खड़ा था
वह धरा हिली
सामने का वृक्ष हिला
वृक्ष पर बैठी चिड़िया
और चिड़िया में समाया आसमान
सब दिक्-दिगन्त
सब कुछ हिला
तुम्हारा नाम लेने से

ठहरी हुई सृष्टि के
दरवाजे़ पर दस्तक है
तुम्हारा नाम।