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पीठिका में / नामवर सिंह
Kavita Kosh से
पीठिका में
उठती हुई सिम्फ़नी
सिन्धु-सी रोशनी
कक्ष का दोलना ।
डूबना डूबना डूबना
दृष्टि में
नीलिमा नीलिमा नीलिमा घोलना ।
देह को चालती-सी नसों का
किसी चेतना में
कृमि-कीट-सा डोलना ।
वक्ष में मौन से प्यार का
देह में
वस्त्र का नित्य नया मुँह खोलना ।