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मूँछें-6 / ध्रुव शुक्ल
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मूँछें मुँड़ाकर
पगड़ी बाँध ली है पिता ने
वे आख़री बादशाह की तरह लग रहे हैं
पगड़ी ढीली हो जाती है
गिरने के डर से
उसे बाँधते हैं रोज़
सिर छोटा होता जा रहा है
झुकने के डर से
भयभीत पिता तन कर चलते हैं
अरमान मचलते हैं
पिता के सिर पर मौत मँडरा रही है