भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच है / नील कमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं
यह ग़लत है
कि मैं समुद्र होना चाहता हूँ

ज्वार-भाटे की राजनीति
मैं नहीं चाहता

हाँ
यह सच है
कि समुद्र के बीच
ठीक उसके छाती पर
मैं टापू-सा खड़ा होना चाहता हूँ