भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोलहवीं मोमबत्ती / प्रदीपचन्द्र पांडे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोलहवीं मोमबत्ती के
होते हैं
पंख

वह फूँकने से बुझती नहीं
उड़ने लगती है

जहाँ-जहाँ टपकती हैं
उसकी बूँदें
वहाँ कुछ जलता नहीं
सिंकता-सा है

और सुरक्षित रहता है
सब कुछ
बूँद के नीचे !