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इस लोक में / गिरिजा अरोड़ा
Kavita Kosh से
इस लोक में देवकन्याएं नहीं आती
आती हैं तो
कभी हँसती, कभी रूठती,
नकचड़ी सी फरमाईशें
जो इसे
देवलोक हैं बनाती
इस लोक में देवता नहीं दिखते
दिखते हैं तो
गठीले, रौबिले फरमान
कभी पूरे, कभी अधूरे
अरमान
जो यहां
कितने देवालय हैं बनाते
इस लोक में कल्पवृक्ष नहीं उगते
उगते हैं तो
रसदार और फलदार
अनुभव
जो जीवन को
सुधा रस से हैं भरते
चांद सितारे बसते अंबर
सूरज का भी घर नील गगन
छोटे छोटे जूगनू भी लेकिन
धरती को कर देते जगमग