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काम / चित्रकार / नरेश अग्रवाल

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हम नौकरी में हो या व्यवसाय में
काम बंधे हुए हैं निश्चित दायरे में
उसी के अनुसार हमें काम करना और व्यस्त रहना है
सभी पर स्पद्र्धा का बोझ इतना भारी
कि हम चुपचाप बैठे नहीं सकते
चुपचाप बैठे तो
साथ काम करने वाले बैठने नहीं देंगे
क्योंकि हमारी गति से उनकी गति बढ़ती है।
इतने सारे कामों की श्रृंखला में बंधे रहने के बाद
बहुत कम समय बचता है व्यक्तिगत का
अब नयी-नयी तरकीबें और उन्नत किस्म के व्यवसायिक सृजन ही
बन गए हैं मन बहलाने के साधन
एक अनुशासन कठोरता का हमेशा हमें घेरे हुए
साधारण किस्म के आराम की गुंजाइश इसमें बहुत कम है।