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कीमती है ज़िन्दगी / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
पंखों से हटा लो
उंगलियों की पोर
और उड़ा दो तितलियों को
बाग़ीचे में
और फिर भागो उनके पीछे-पीछे
तभी जानोगे
कि क्या होती हैं तितलियाँ
उठा लो लंगर
कि लहरे बेताब हैं अगवानी को
फ़िलहाल जहाज जहाज नहीं है,
एक बड़ा बर्तन है
तैरने दो जहाज को उन्मत्त
लहरों के राजपथ पर
हर्बेरियम फ़ाइल में
जंगल नहीं
जंगल की झलक है,
जंगल का एक टुकड़ा
बित्ता भर
वहाँ निष्प्राण वनस्पतियाँ हैं
न पेड़,
न परिन्दे,
न वन्य आदमजाति प्राणी, न हवा
अजायबघर में
दुर्लभ कीमती ममियाँ हैं
फराओह वंश की,
मगर वो निसार हैं
नील नदी के दोनों तटों पर,
जहाँ आज भी उमगती है ज़िन्दगी ।