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घुघुआ झूल / धनन्जय मिश्र
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घुघुआ झूल घुघुआ झूल
आ रे नूनू घुघुआ झूल
तोरा हम्में रोज झुलैबौ
गाबी-गाबी लोरी सुनैबौ
सुनी-सुनी ई लोरी केॅ
जैयैं नै तों हमरा भूल।
घुघुआ झूल ...
लोरी बोलै एक कहानी
दादी, काकी, मौसी नानी
बड़ोॅ बनी केॅ तोहें दीहैं
होने हमरा एकटा फूल।
घुघुआ झूल ...
तोहीं सूरज चन्दा छै
तोहीं हमरोॅ नन्दा छै
देखी केॅ तोरे ही सूरत
हम्में जाय छी सब कुछ भूल।
घुघुआ झूल ...
तोरोॅ माय बड्डी होशियार
भरलोॅ बुद्धि शुद्ध विचार
फूल बनी केॅ जीवन में तोंय
दियै नै कहियो एक्को शूल।
घुघुआ झूल ...
जब हम्में बुढ़ो हो जइभै
बात-बात में ही ओझरैभै
आँख-कान दोनों तोंय बनी केॅ
करिहै हमरो काज कबूल।
घुघुआ झूल ...।