भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तमसो मा ज्योतिर्गमय / बिहारीलाल कल्लू
Kavita Kosh से
हे प्रभो, चरणांे से तेरे क्यों मैं इतनी दूर हूँ।
हरो मेरे दुःख भगवन, मैं बहुत मजबूर हूँ।
ओम् नमः शिवाय, ओम् नमः शिवाय।।
बिना तोरी दया स्वामी मैं बहुत लाचार हूँ।
तेरे दर्शन को प्रभो मैं बहुत ही बेजार हूँ।
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्।।
डूबते को बचा ले प्रभो मैं पड़ा मझधार में।
है दयामय तू प्रभो, मैं पड़ा तेरे द्वार में।
नमो मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च।।
तापत्रय से दुखी हूँ प्रभु पापमय संसार में।
मोह-जाल में प्रभु फँसा हूँ घर-बार में।
तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्यो मार्मितम गमय।।
शरणदाता, भक्तरक्षक तू प्रभु मशहूर है।
दुखः मंे कल्लू पड़ा, तो तू क्यांे इतनी दूर है।
असतो मा सद् गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
ओम्