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दोहा सप्तक-11 / रंजना वर्मा
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प्रिय अपने संग ले गये, जीवन के सब रंग।
अब तो हर पल झेलनी, है जीवन की जंग।।
मधु बसन्त पतझर हुआ, तुम बिन तन निष्प्राण
त्रिविध समीरण लू बना, जीवन हुआ मसान।।
यादें हैं कचनार सी, खिल खिल उठे समीर।
बजी प्रेम की बाँसुरी, मन - यमुना के तीर।।
हुईं भावनाएं मुखर, जैसे सुमन सुगन्ध।
अलियों की गुनगुन सदृश, चले बिखर मधु छंद।।
आँगन के इस ओर हम, तुम आँगन के पार।
वैमनस्य ने खींच दी, क्यों मन में दीवार।।
कब कब दुर्घटना हुई, कहाँ आ गयी बाढ़।
धन के लालच में हुए, सब सम्बन्ध प्रगाढ़।।
तब न सुरक्षा कर सकी, अब करती उपचार।
मृतकों की कीमत लगी, देने अब सरकार।।