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नहीं लौटे पुराने दिन / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
मेघ आये
पर नहीं लौटे, पुराने दिन
फिर घटा छाई
बुलाया
बादलों ने कर इशारे
बारिशें छत पर चढ़ीं
आवाज़ दें हमको पुकारें
सुबह से
बाहर खड़ा है, ये बताने दिन
मखमली बूँदें
हवा के साथ
फिर से बहीं होंगी
मेघ की बातें जुही के
कान में कुछ कही होंगी
और हम
ऑफिस में हैं, ऐसे सुहाने दिन
सारसों का
एक जोड़ा
ताल पर फ़िर घूमता है
कोई आवारा जलद
फ़िर फुनगियों को चूमता है
लग गया है
राह में, किस्से सुनाने दिन।