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फर्क-2 / भरत ओला
Kavita Kosh से
रेगिस्तान में
भटकता मुसाफिर
प्यास और थकान
बंदरिया की तरह
छाती से चिपकाए
ढूंढ रहा है
बूंद-बूंद पानी
देह भर छाया
फूलों लदे बगीचे में
घूम रहा है मुसाफिर
टॉमी कुत्ते के साथ
फव्वारे से गुजरता
कोमल घास को रौंदता
प्रजातियां पहचानता
रंग-बिरंगे फूलों की
कूलर से चिपचिपाई
देह सुखाता
उलींचता मन से अपने
दिन भर बटोरा आलस्य