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भय - 1 / रुस्तम

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भय ही में जीता हूँ,
भय मुझे लगा हुआ है।

मेरी आत्मा
काँपती है
किसी
मामूली
चीज़ की तरह।

मैं बाहर निकलता हूँ,
फिर भीतर लौट आता हूँ।

भय को सोचता हूँ,
लिखता हूँ :

यहाँ
काग़ज़ पर भी भय है।

शब्द
मुझ पर लपकते हैं,
मुझे डराते हैं:

कितना
विकृत है
उनका चेहरा!

विचार भय है
अर्थ भय
वाक् भय
वाणी भय

प्रेम भय
प्रियतम भय
देह भय
प्राण भय