भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मछलियॉं / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
एक्वेरियम के रहस्यमय
हरीतिमा भरे संसार में -
गुड़प - गुड़प ध्वनि
इधर से उधर,
ऊपर से नीचे,
नीचे से ऊपर
नृत्य की तन्द्रा में
डोलती
एक साथ बहुत लिप्त
और बिल्कुल निर्लिप्त
कभी हुलस कर
कभी निर्विकार
खाने की गोलियां
निगलतीं
मछलियां
पूर्णतः दूसरों पर निर्भर
होने का सुख सहती,
स्वयं को
हर छोटे - बड़े निर्णय के
अधिकार से च्युत पातीं
बार - बार
मछलियाँ
हूबहू तुम्हारी जैसी