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महाकुँभ का लेखा / त्रिलोचन

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रामलाल, देखो कोई अपना भी है क्या,
ट्रक में भर भर आज गंज शव का आया है
उकस पुकस करते हो, कुछ बेचैनी है क्या,
लाशों का सुखवन पुलीस ने फैलाया है,
इसी के लिए तो उसने पैसा खाया है
सुप्रबंध का कहना ही क्या है, कमाल था,
समाचारपत्रों ने गली गली गाया है
पहले दिन तक ऊपर सब का लगा टाल था;
जल्दी थी, क्या क्या कर लेते, बुरा हाल था;
अब पंक्तियाँ बिछी हैं संख्याबद्ध कर दिया ।
तीर्थयात्रियों का जो कुछ भी माल जाल था
उस पर अब सशस्त्र पहरा सन्नद्ध कर दिया ।

लोग कुतूहल से, भय से, देखा करते हैं,
महाकुंभ की फूटन का लेखा करते हैं ।