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माँ का झुकना / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
इस बार थोड़ी बूढ़ी लगी माँ
अच्छा नहीं लगा
उसका झुककर चलना
सुंदर,सुगढ़,मजबूत और तनी -तनी सी माँ
अचानक झुक गयी
अच्छा नहीं लगा
कभी नहीं देखा था माँ को झुके हुए
तन से न मन से
पड़ोस से न समाज से
न किसी भी बात से
यहाँ तक कि पिता से भी।
पिता थे परम्परा
माँ थी प्रगति
दोनों में पूरब -पश्चिम का फर्क था
निभा लिया जीवन भर साथ
झुकी नहीं माँ
वह तब भी नहीं झुकी
जब नहीं रहे पिता
गरीबी -बदहाली से हारी-बीमारी से
डटकर लड़ी,
शान से जीती रही
कभी मानकर हार झुकी नहीं माँ
कभी -कभी लगता था खलने
माँ का हमेशा तने रहना
बच्चों के लिए भी नहीं झुकना
तब बड़ी कठोर लगती थी माँ
पर आज जाने क्यों
अच्छा नहीं लगा
माँ का झुककर चलना।