भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिनख : अेक / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
पैली
मिनख री मौत सूं
बेसी हो मान
दीन-ईमान रा
घणांईं हा कदरदान
पण अबै
स्सौ' कीं धिक्कै
दीन-ईमान
हाथोहात बिक्कै
ठैलां माथै
चौड़ै धाड़ै बिकर्या है
गाँधीजी अर भगवान
कोई नीं बोलै
जाणै काटली जबान।