भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़की - 2 / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


छोड़ना
बसा बसाया घर
मित्र, शुभाकांक्षी
और आदतें
एक झटके से

और चल पड़ना
अकेले, अनजान रास्तों
अपरिचित शहर को

जतन से सम्भाले
आत्मसम्मान
दूर तक चलती रही
लिए असम्भव को सम्भव
करने का ध्रुव संकल्प
कदम - दर कदम
चलता कुछ खोने का क्रम

अभिशाप लगती
अपनी ही परछाई
साथ चलती,
इस लंबी धूप से लड़ते हुए
बार - बार और चारों तरफ
मिलती रही,
कहीं उपलब्धि तो नहीं ?
अक्सर सोचती
बहुत सोचती
लड़की