भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह-2 / प्रदीप जिलवाने

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


शायद आपको विश्‍वास न हो
परन्तु वो खुद भी नहीं जानता

कि
उसके कितने हाथों में
कितने हथियार हैं ?

कि उसके कितने पैरों में
कितने जूतें हैं ?

कि उसके कितने मुँहों में
कितने जुबानें हैं ?

और
अपने कितने सरों की
अब तक वह चढ़ा चुका है बलि।
00