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अभिसारिका / संध्या रंगारी

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'पत्नी' कहता है वह उसे
पर उसे ज़रूरत होती है
सवेरे उसके भीतर की मज़दूरिन की
और शाम को
उसके भीतर की
अभिसारिका की ।


मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित