Last modified on 12 दिसम्बर 2010, at 22:44

औरत-5 / किरण येले

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: किरण येले  » औरत-5

समझ नहीं आता कैसे
औरतें जागती हैं सवेरे सबसे पहले,
उठती हैं
रसोईघर में जाती हैं,
और चूल्हा, स्टोव या गैस सुलगाती हैं ।
फिर सूर्य चढ़ते-चढ़ते
बनाती रहती हैं कुछ-कुछ
भीतर ।
और सूर्य मध्य तक आया कि
परोसती हैं सबको ।

दोपहर में
सभी के सो जाने पर
सोती हैं औरतें थोड़ी देर
तब भी औरतें जाग जाती हैं सबसे पहले,
रसोईघर में जाती हैं
और चूल्हा, स्टोव या गैस सुलगाती हैं ।
फिर सूर्य डूबने तक
बनाती रहती हैं कुछ-कुछ
भीतर ।
और परोसती रहती हैं सबको
अँधेरा फैलने पर ।

मैं हमेशा चौंकता हूँ
जब यह विचार आता है कि
औरतें
सचमुच क्या सुलगाती होंगी
भीतर
और क्या परोसती होंगी
थाली में ।

मूल मराठी से अनुवाद : सूर्यनारायण रणसुभे