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गोरधन / सत्यप्रकाश जोशी

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भीजणदयौ साथणियां
म्हनैं इण बिरखां में भीजणदयौ।

इण भांत रौ भीजणौ
नीं कदै ई लिखीजियौ
नीं कदै लिखीजैला
किणी रा भाग में।

ओ तौ फगत म्हारौ भाग,
ऐ तो फगत म्हारा लेख,
ओ म्हारी प्रीत रौ परसाद
सगळी धरती नै।

म्हैं ऐड़ी मूंजी कोनी
कै म्हारी खुसी रै खातर
कांन्हा नै बिलमाय राखूं,
गिरधारी नै बिलमाय राखूं
डूबती दुनियां म्हारै गिरधारी री
आंगळी रै पांण
इण प्रळै में सूखा रैवै।
प्रीत री आ छेली साध,
नेह री आ परली सींव।
इण सूं आगै प्रेम रौ पंथ कोनी,
इण सूं आगै हेत री हद कोनी।

म्हारा सायब सूं दुनियां सुख पावै
तौ म्हारां हिवड़ा में
अखूट आणंद लहरावै।

म्हारा सायब सूं जे दुनियां कळपै
तो म्हैं जनम जनम दुख पाऊं
म्हारा गोवरधन गिरधारी
म्हैं वारी रे थां पर वारी।

कांन्ह !

आज थां पर जितरौ गरब करूं थोड़ौ,
आज थां पर जितरौ मांन करूं थोड़ौ,
किण नै आज इतरौ
आपरै आपा रौ गुमेज
कै डूबती बस्ती नै यूं बचायलै !
किण रै हिया में इतरी हूंस
कै परबत नै पेरवा माथै नचायलै !
इण आणंद मंगळ री घड़ी में
म्हनैं मत बरजौ रै कोई

भीजणदयौ साथणियां
म्हनैं इण बिरखां में भीजणदयौ।