Last modified on 14 दिसम्बर 2010, at 12:08

ब्याव (4) / सत्यप्रकाश जोशी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:08, 14 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यप्रकाश जोशी |संग्रह=राधा / सत्यप्रकाश जोशी…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


नई कांन्ह ! नईं
थारौ म्हारौ ब्याव कोनी हो सकै !

बिनणी तौ जीतणी पड़ै।
गऊ सी किणी किन्या नै
जीतवा सारू
केई राजा भेळा हुवा होसी।
सै आप आप रै
भुजदंडां रौ बळ आंकसी।
कोई धनख तोड़णौ पड़सी,
कै वळै कोई अणहोणी करणी होसी
थारी भुजावां रौ बळ
कंवारी किन्या रै
घरवाळां रौ प्रण पूरौ करसी
अणजांण किन्या
अण जांण सूरवीर रै गळा में
बरमाळा पूरसी,
मावड़ बाबल हरख रा गीत गवासी,
खुसिया रा ढोल बजासी
छे‘ला मौ‘रत तांई
हारयोड़ा मनहीणा राजा
घमसांण मचावसी।
वांनै भरपूर हरायां
थारै आंगणियै रिमझिम करती
लाडी आवसी।