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भगतसिंह से / शैलेन्द्र

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रचनाकार: शैलेन्द्र

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भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की,

देशभक्ति के लिए आज भी सज़ा मिलेगी फाँसी की !


यदि जनता की बात करोगे, तुम गद्दार कहाओगे--

बंब संब की छोड़ो, भाषण दिया कि पकड़े जाओगे !

निकला है कानून नया, चुटकी बजते बँध जाओगे,

न्याय अदालत की मत पूछो, सीधे मुक्ति पाओगे,

कांग्रेस का हुक्म; ज़रूरत क्या वारंट तलाशी की !


मत समझो, पूजे जाओगे क्योंकि लड़े थे दुश्मन से,

रुत ऎसी है आँख लड़ी है अब दिल्ली की लंदन से,

कामनवैल्थ कुटुम्ब देश को खींच रहा है मंतर से--

प्रेम विभोर हुए नेतागण, नीरा बरसी अंबर से,

भोगी हुए वियोगी, दुनिया बदल गई बनवासी की !


गढ़वाली जिसने अंग्रेज़ी शासन से विद्रोह किया,

महाक्रान्ति के दूत जिन्होंने नहीं जान का मोह किया,

अब भी जेलों में सड़ते हैं, न्यू-माडल आज़ादी है,

बैठ गए हैं काले, पर गोरे ज़ुल्मों की गादी है,

वही रीति है, वही नीति है, गोरे सत्यानाशी की !


सत्य अहिंसा का शासन है, राम-राज्य फिर आया है,

भेड़-भेड़िये एक घाट हैं, सब ईश्वर की माया है !

दुश्मन ही जब अपना, टीपू जैसों का क्या करना है ?

शान्ति सुरक्षा की ख़ातिर हर हिम्मतवर से डरना है !

पहनेगी हथकड़ी भवानी रानी लक्ष्मी झाँसी की !


1948 में रचित