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परेम / प्रमोद कुमार शर्मा

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कांई हुवै परेम ?
विचारतौ उभौ हो ऐकलौ
कै याद आयगी
दादी सा री डकार लाम्बी !
‘‘ वासना पुरख री है सरप
अर लुगाई री ओट है बाम्बी !
जिण रै सरणै हुंता‘ई
अलौप हूज्यै सरप
टूटज्यै पुरख रौ दरप !’’
कैंवता दादी सा,
परेम लाडी ! आ‘ई डकार हुवै
जे आदमी री सुरतां मांय करतार हुवै !