आत्मा
धरती री
गिगनार,
कौनी सकै
नकार
इण साच नै माटी !
अणद, अरूप
अखंड, अलेप
पण
सगलो सिरजण
इण रै सापेख,
करतार, भरतार
अपार
इण री खिमता,
अणभूत सकै सत्ता
चेतणा री दीठ,
ओ मांय, बारै
फेर सकै
कद कोई
इण रै बिन्यां पीठ ?
भलांई हुवो
कतोई वसीठ ?
ओ निरपेख
कोनी मानता री पीक,
सिसटी रो
अबूझ ईठ
ओ अवधूत अकास !