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संवेदणा / कन्हैया लाल सेठिया

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गमगी
सबदां री
अड़ाभीड़ में
बापड़ी कविता,
फिरै सौधती
जायोड़ी नै
मावड़ी संवेदणा,
मिली
उणियारै री तो केई
पण कोनी ठगीजी
पिछाण,
छेकड़ धाप‘र लाण
रो कूक‘र
बावड़ी पाछी
हिवड़ै रै झूंपै में,
पड़गी हू‘र निढाल
लागगी मींट
चिनीक ताल
दीखी सपनै में
छोरी
सागै हो
भोग्योड़ै जथारथ रो
जड़वादी छोरो,
खुलगी आंख
अतै में खोल‘र पांख
उड़गी हेज‘र
अबोल इंडां नै
चीड़ी,
जावै ही बिल कानी
ले‘र बचियां तांई
आप स्यूं दूणो
एक दाणो
कीड़ी !