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रूंख / भंवर भादाणी

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रूंख !
सी में थारो नाचणो
बसन्त में झणझणावणो
गरमी में
गैरावणो
कांई है भेद ?
तूं नीं हुवै कदै
बूढ़ो -
फैलियौड़ी है थारी
राग री रंगा
धरती मांय
ऊंडी
घण ऊंडी।