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इतियास (1) / भंवर भादाणी


रैयो है
थांरो एक इतियास -
लाम्बो
मोकळो लाम्बो।
आदमी रै
सागै-सागै
चाल्यो
थांरो इतियास
थां - थांरी
कींयां-कींयां बणाई
गाथावां-पोथ्यां
आ एक कां‘णी है -
अजूं तक छे नीं आयो जिकी रौ
आ कां‘णी है
साच
उत्ति ही सांच
जित्तो
सूरज अर चांद।
कदै ई थे।
भाखरी चढ़
निरखता हरी चादरी
समेट लैं‘वता -
एक निजर में।
धरती नै कर दैंवता
नागी -
साव नागी !
थांरी निजरां रा
जित्ता करां बखाण
उत्ता ई थोड़ा।
थांरी लिलाड़ी चमकती
थांरी आंख में जादू हो
थांरो चैरौ-पळपळतो सूरज
थांरा हाथ रा हुनरी
थांरा रैया है
घणाई सरूप
घणा घणा औतार !
कदै ई थे
द्रोणाचार्य बण‘र
बजाई तो
हाजरी बाजरी री
पण
मांग लियो
आसीस रै गरब सूं
जीवणो अंगूठो
एकलव्य रौ
कैरी मजाल क‘
धोखो केवै ...!
कदै ई थे
तोड़ण विश्वामितर रौ
बरत
धारये रूप
मेनका ।
म्हे माना
माननी पड़ै
थांरी -
अर
थांरे जिसां री
महिमा।