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नेतागीरी अफ़सरशाही / कैलाश गौतम

</poem> जैसी नेतागिरी है जी वैसी अफ़सरशाही है सिर्फ झूठ की पैठ सदन में सच के लिए मनाही है चारों ओर तबाही भइया चारों ओर तबाही है ।

संविधान की ऐसी-तैसी करनेवाला नायक है बलात्कार अपहरण डकैती सबमें दक्ष विधायक है चोर वहाँ का राजा है सहयोगी जहाँ सिपाही है ।

जो कपास की खेती करता उसके पास लँगोटी है उतना महँगा ज़हर नहीं है जितनी महँगी रोटी है लाखों टन सड़ता अनाज है किसकी लापरवाही है ।

पैरों की जूती है जनता, जनता की परवाह नहीं जनता भी क्या करे बिचारी, उसके आगे राह नहीं बेटा है बेकार पड़ा है बिटिया है अनब्याही है ।

जैसी होती है तैय्यारी वैसी ही तैय्यारी है तैय्यारी से लगता है जल्दी चुनाव की बारी है संतो में मुल्लाओं में भक्तों की आवाजाही है । </poem>